पिछले साल नवंबर में हैदराबाद निकाय चुनाव प्रचार के दौरान बड़े-बड़े नेताओं और मंत्रियों को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा| लोगों ने, खासकर महिलाओं कई जगह तथाकथित कद्दावर नेताओं की घेरबंदी की और तीखे सवाल पूछे, इतना ही नहीं कई जगह तो इन नेताओ को जनता के विरोध के चलते अपनी सभाएं छोड़ कर भागना पड़ा| आपको बता दें की जनता के ये विरोध केवल किसी एक राजनैतिक पार्टी के लिए नहीं था | बल्कि ये गुस्सा था नेताओं के उस नकारेपन के लिए तो की उन्होंने दो-तीन महीने आयी बाढ़ के दौरान दिखाया था | जनता के इस विरोध का सामना करीब-करीब हर पार्टी के नेताओ को झेलना पड़ा था|
दरसल पिछले साल ऑक्टूबर में हैदराबाद में बाढ़ के दौरान जनता को जान और माल का काफी तगड़ा नुकसान हुआ | कितने ही परिवारों की शहर छोड़कर जाना पड़ा था क्यूंकि अचानक इस बेमौसम बरसात से निपटने के लिए न ही प्रशाशन तैयार था और न ही राजनैतिक पार्टियां | कई बार पूर्व चेतावनियों के बावजूद GHMC पार्षद आगामी चुनाव में अपनी टिकट के जुगाड़ में लगे हुए थे और ऐसे में आप खुद ही समझ सकते हैं ही जनता की किसको पड़ी होगी|
चुनाव से करीब डेढ़ महीने पहले ही हैदराबाद में भीषड़ बाढ़ आयी जिसके लिए ना ही नगर निगम तैयार था और न की नेता। नतीजा ये हुआ की बाढ़ के दौरान सभी हाथ पाओ फूल गए | करीब एक हफ्ते तक बढ़ का तांडव चला और इस दौरान नेता लोग जनता के बीच से नदारद रहे……. जनता बेचारी बढ़ से खुद ही जूझती रही…… लेकिन राजनेताओ के इस निकम्मेपन को भूले नहीं। ….. इसका सूद समेत हिसाब लें आगामी चुनावो में |
जनता ने अकेले झेला कोरोना का खौफनाक मंज़र
और ऐसा ही कुछ आलम रहा है पिछले एक महीने में जब जनता कोरोना का रौद्र रूप झेल रही थी तो ये नेता या तो अपने-अपने घरों में बंद थे, या फिर सोशल मीडिया पर अपने आकाओं को खुश करने में लगे हुए थे |
कोई आपके घर को sanitise करने की बात कर रहा था तो कोई कोरोना मरीज़ों को मुफ्त खाना बाटने के आश्वाशन दे रहा था|

जनता को जब ऑक्सीजन चाहिए था, कोरोना की जांच करने के लिए नज़दीकी स्वास्थय केंद्र में व्यवस्था की दरकार थी तो ऐसे में ये सभी तथाकथित समाजसेवी और अपने जन प्रतिनिधि गायब थे, या फिर अपनी पब्लिसिटी में व्यस्त थे….. जबकि जनता पूरी तरह से भगवान भरोसे थी |
एक वक़्त तो आलम ये था की अगर कोरोना के चलते अगर आपकी स्थिति गड़बड़ हुई तो पता नहीं था की आप अस्पताल तक पहुंच पाएंगे या नहीं, अगर पहुंच गए तो वहां बेड मिलेगा या नहीं। …. और अगर बिस्तर मिल भी गया तो ऑक्सीजन की कोई गारंटी नहीं थी. हालात ये थे की एक से एक तुर्रमखान सड़क पैर ऑक्सीजन की तलाश में दर-दर की ठोकरे खाते देखे गए. बड़े से बड़े अधिकारी और पैसे वालों वे व्यवस्था के आभाव में अपने किसी खास को खोया|
अब जबकि स्थिति में सुधार हो रहा है तो नेता, तथाकथित समाजसेवक और छुटभइये अपने दड़बों से बहार आने लगे हैं | कोई घर-घर में ऑक्सीजन मशीने पहुंचने के बात कर रहा है तो कोई मुफ्त ऑक्सीजन सिलिंडर का इंतेज़ाम करने की बात कर रहा है|
करें सही वक़्त का इंतज़ार, फिर पूछें सवाल
जनता से अनुरोध है की इनके फुसलावे में न आए और सही वक़्त का इंतज़ार करें …. और जब ये हाथ जोड़कर आपके दरवाज़े पैर आएं तो इनके समक्ष तटस्थ होने के बजाय इनसे सवाल करे. इनसे पूछे की तब कहा थे जब हमारे पडोसी ने ऑक्सीजन के आभाव में सड़क पर दम तोड़ दिया था , एक नवजवान को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा क्युकी उसे समय पर हॉस्पिटल में जगह नहीं मिली… किसी को दो टके ले नर्सिंग होम में २४ घण्टे के लिए ५० हज़ार देने पड़े क्युकी बड़े और नामी – गिरामी अस्पतालों में जगह ही नहीं थी…..
मुझे यकीन हैं की पिछले एक महीने में आपने भी खुद को कभी न कभी माज़बूर और असहाय पाया होगा जब आपने किसी जानकार को इलाज और दवा के आभाव् में दम तोड़ते हुए देखा होगा एक सुना होगा……